Last modified on 17 फ़रवरी 2017, at 11:42

सहस्त्राब्दी / ब्रजेश कृष्ण

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ नहीं होता पल
विलीन होते हैं
दिन/मास/वर्ष/और दशक
बीत जातीहैं सदियाँ

समय के अनन्त प्रवाह में
हल्दी की गाँठ भर है सहस्त्राब्दी

गिनना बन्द करें
दो हज़ार वर्ष पहले
सूली पर टाँग आये थे जिसे
चलो, ढूँढें उसे।