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गीत / व्यथित

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बरसि गेलै बदरा मोरे अंगना
कि बनी गेलै अंगना गंगा-जमुना।

रसें-रसें बरसै रसलॅ बुन्दरिया,
तीती गेलै लॅत-गात भिजलै चुनरिया,
बिसरि गेलै सुरता उगलै सपना।

रोपलॅ जुआय गेलै नेनुआ अँचरबा,
रही-रही बिरथा फड़कै अँचरबा
अटकि गेलै कहवाँ पापी नैना।

बिजली चमकि गेलै भागो चमकलै,
आहट सुनथैं चेहरा दमकलै,
उमगि गेलै सजनी उमगि गेलै सजना।