Last modified on 20 अक्टूबर 2017, at 15:23

अगर पिता होते / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:23, 20 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मजा शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ज़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अगर पिता होते
रूठ जाती तो मनाते
खाना न खाती तो खिलाते
नींद न आती तो सुलाते
माँ को कहा करते थे
'बेटियाँ ईश्वर का आशीर्वाद होती हैं
इनका जी नहीं दुखाया करते
भूखे नहीं सुलाया करते
जिस घर में बेटियाँ भूखी सोती हैं
वहाँ देवताओं का लगता है श्राप
वे ही पोंछती हैं माँ-बाप के आँसू’
सुनकर माँ सो जाती चैन की नींद
अचानक पिता गए हमारे बीच से
तब से मैं रूठने की बात पर भी नहीं रूठती
जैसा भी खाना बने खा लेती हूँ
माँ को नींद नहीं आती
गोलियाँ भी हो चुकी हैं बेअसर
काश! पिता होते
माँ की आँखों में होती सुख की नींद
न मरता मेरा बचपन
समय से पहले
अगर पिता होते