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छोड़ रही हूँ / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

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हर बरस कुछ न कुछ
छूट जाता है मुझसे अनायास

पिछले बरस उत्साह गया
इस बरस विश्वास

कुछ न कुछ तो जाना तय ही है अगले बरस भी
इसलिए मैं ही छोड़ रही हूँ चीज़ों को एक-एक कर

जैसे पेड़ छोड़ता है छाल
पानी छोड़ता है रेत पर निशान

जैसे विदा होती बेटी छोड़ जाती है
घर भर में आँसू ही आँसू

चीज़ें खुद छूटें उससे पहले
मैं ही छोड़ रही हूँ चीज़ों को एक एक कर