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कवित्त / प्रेमघन

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भगवती प्रसाद के प्रमाद को ठिकानो नाहिं,
बूढ़ो गौरीशंकर भयंकर कहायो है।
माता भीख लाल की गोटी सदा लाल रहे,
लाल को बिहारी है अनारी पछतायो है॥
माताबदल पाण्डे अदल को बदल करैं,
राजाराम कृपा करि सबको सुरझायो है।
बाछाजू के जेते है मुसाहेब समझदार,
लाल घिसिआवन सबही को घिसिआयो है॥
शिवबर्द लाल महिमा विशाल।
मेटी यस लेकर लाल गाल॥
तालन में भूपाल ताल है और ताल तलैया।
बर्दन में शिवबर्द लाल हैं और बरद सब गैया॥
ज्वाला मलीन मति बिन्दादीन प्रवीन।
आय अलीगढ़ मैं भये पूरी खाय बे दीन॥
भरा क्रोध मः वृथा आय गर्जः
सुसा शास्त्रि वर्यः सुसा शस्त्रि वर्यः
सूस तुम पण्डित होहुगे हो, बड़े खर खण्डित होगे हो।
पगाले बँगाले रहत हैं साले दिहल के,
मनोहारिन बारिन जुगल भमनी जिनकी युवा।
तिन्हैं तो ब्याहा है अनत लेजाकर के कहूँ,
बची जो थी बृद्धा दिहल के माथे मढ़ दियो॥
तुम जगलाल, तुम ठग लाल, तुम भगा लाल का भाई होसु।
सुनो जी टट्टू जी महाराज।
कि तुम बदमाशों के सिरताज॥
तमाचे खाओगे तुम आज।
करोगे फिर जो ऐसा काज॥
बिल्ली कीबहन भिल्ली रहती है सहर दिल्ली।
श्री बाबू बेणी प्रसाद। यद्यपि नहिं जानत कवित स्वाद॥
श्री बदरीनाथ प्रसाद और नहीं तो बाद विवाद॥
हाँ हरिचन्द कितै गए दुःख बड़ा है होत,
दोऊ बनियाँ रोवत है बैठे जइस कपोत।
नैहर में ससुरारि नारि करि, सोढर सोवै सूनी सेज।
जब चमकै बिजुरी घन गरजै, थाम्हैं कहेरि करेज॥
है अजब कुदरत खुदा के शान की।
जान की दुशमन हुई है जानकी॥
कहाता था जमाने में जो एक दिन हूर का बच्चा।
वही क्या बन गया अब देखिए लँगूर का बच्चा॥
आए अनखाए संकष्टहरण शर्मा।
गुर के घर जाय-जाय पढ़त मार खाय खाय।
संध्या को संध्या करि लौटे हैं घर माँ॥