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कजली 2 / प्रेमघन

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गौरी पण्डित बाटेन बड़े विसनियाँ रे हरी।
रानी बड़हर के घुइरन को सुन्दर घाट टिके है रामा।
रामदीन पण्डित जबदेखलैं जज केनि पटकेनि बहुतै रामा,
हरि हरि दौड़ेनि लैकैं हाथ में पनहियाँ रे हरी॥