Last modified on 21 मई 2018, at 13:01

कजली / 32 / प्रेमघन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विकृत विशेषता

खँजरी बालों की लय

औरन से रीति, राखि किहले अनीति, तैं देखाय झूठी
प्रीति, फँसाये जटि-जटि कै रे साँवलिया॥
नैनवाँ नचाय, मन्द-मन्द मुसुकाय, लिहे मनहिं लुभाय,
ठाट ठटि ठटिकै रे साँवलिया॥
गोकुल गलीन, लखि सहित अलीन, बिनये तैं बनि दीन,
साथ सटि सटिकै रे साँवलिया॥
ऐसे चित चोर! चित चोरि चहुँ ओर, किहे सोर नित
मोर, नाव रटि रटिकै रे साँवलिया॥
प्रेमघन पिया, लगि सौतिन के हिया, तरसाये मोर
जिया, बात नटि नटिकै रे साँवलिया॥56॥

॥दूसरी॥

कहि नहिं जाय, कर मीजि पछताय, रही मन समझाय,
तैं सताये दम दै-दै रे साँवलिया॥
देखि धाय धाय, बरबस पास आय, झूठी बातन बनाय,
बिलमाये कर धै-धै रे साँवलिया॥
ऐंठि इतराय, मन्द-मन्द मुसुकाय, बाँके नैनवाँ नचाय कै,
चोराये चितलै लै रे साँवलिया॥
प्रेमघन हाय! कबहूँ न गर लाय, मिले मन हरखाय,
तैं छली छल कै-कै रे साँवलिया॥57॥