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कजली / 42 / प्रेमघन

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गुण्डानी लय
तथा गुण्डानी भाषा और भाव

ठाला में क्या सावन बीतल जाला रे हरी॥
तोहरे संगी साला, रोजै लहर करैलैं आला रामा।
हरि हरि हम तौ बैठा फेरत बाटी माला रे हरी॥
तुहईं पर जिव जाला, हमसे जिन करः टालबेटाला रामा।
हरि हरि टहरावः जिन दै-दै बुत्ता बाला रे हरी॥
यार प्रेमघन प्याला मदिरा प्रेम पिये मतवाला रामा।
हरि हरि तोहरे दर पर अब तौ डेरा डाला रे हरी॥77॥