Last modified on 21 मई 2018, at 13:39

कजली / 65 / प्रेमघन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:39, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रंडियों की लय

लगत मुरत तोरी नौकी रे साँवलिया॥टेक॥
सँवरी सूरत रस भरी अँखियाँ,
चितवन चोरनि जी की रे साँवलिया॥
बरसि प्रेमघन रसहि सुनाओ,
तनक तान मुरली की रे साँवलिया॥112॥