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कजली / 74 / प्रेमघन

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ढुनमुनियाँ की कजलियाँ

प्रथम लय

"हरि हो राजा दुअरवाँ चम्पा बेलि मडुआ झकझूमरिया" की चाल

हरि हो-मानो कहनवाँ हमार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो-गावत राग मलार, बजाओ फिर बाँसुरिया॥
हरि हो-वर्षा के आइलि बहार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो-छाये मेघ दिसि चार, बजाओ फिर बाँसुरिया॥
हरि हो-जमुना बढ़ीं जल धार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो-लखि न परत जाको पार, बजाओ फिर बाँसुरिया॥
हरि हो-मोर करत किलकार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो-दादुर रट दिसिचार, बजाओ फिर बाँसुरिया॥
हरि हो-झूलो हिंडोरा संगयार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो-करिके प्रेमघन प्यार, बजाओ फिर बाँसुरिया॥

॥दूसरी॥

मोहिं टेरत है बलबीर बजी बन बाँसुरिया।
सुनि बढ़त मनोज की पीर बजी बन बाँसुरिया॥
चलु बेगि जमुनवाँ के तीर बजी बन बाँसुरिया।
सखियन की भई जहाँ भीर बजी बन बाँसुरिया॥
जहाँ सीतल बहतसमीर बजी बन बाँसुरिया।
किलकारत कोकिल कीर बजी बन बाँसुरिया॥
घन प्रेम की प्रेम जँजीर बजी बन बाँसुरिया।
मोहि खींचत करत अधीर बजी बन बाँसुरिया॥126॥