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कजली / 76 / प्रेमघन

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कजली की कजली
दूसरे प्रकार का तृतीय विभेद

साँचहुँ सरस सुहावन, सावन, गिरिवर विन्ध्याचल पैं रा।
ह। ह। मिरजापुर की कजरी लागै प्यारी रे ह।॥
हर मंगल त्रिकोन का मेला, होला अजब सजीला रा।;
ह। ह। जंगल में है मंगल की तैय्यारी रे ह।॥
काली खोह छानि कै बूटी, गुण्डे तान उड़वैं रा।;
ह। ह। अष्टभुजा पर भैलीं भिरिया भारी रे ह।॥
कहुँ जुबक जन सजे इतै उत डोलैं, बोली बोलैं रा।;
ह। ह। कहूँ हिंडोला झूलैं बारी नारी रे ह।॥
ओढ़ि ओढ़नी धानी, कितनी गुलेनार चादरिया रा।;
ह। ह। पहिने सारी जंगारी जरतारी रे ह।॥
चातक, मोर सोर जहँ होते, तहँ खनकार चुरी के रा।;
ह। ह। छन्द छड़ापाजेबन की झनकारी रे ह।॥
कानन सघन सृंग गिरि कन्दर, बिहरैं जहँ मृग माला रा।;
ह। ह। तहँ मनहरनी हरनी लोचन वारी रे ह।॥

मंजुल मधुर मलार, सरस सुर सावन, कहकजली केरा।;
ह।ह। गुंजल कुंज मनहुं कोकिल किलकारी रे ह।॥
निरतन नटिन परीन सरिस, संग ढोलक बजत चिकारा रा।;
ह। ह। लट खोले, पहिने टोपी और सारी रे ह।॥
उलटा शहर बनारस मिरजापुर के रसिक रसीले रा।;
ह। ह। होन लगी आपुस में खारा खारी रे ह।॥
बिते पहाड़ी मेला सावन के, जब कजली आई रा।;
ह। ह। मिरजापुर में तब छाईछबि न्यारी रे ह।॥
घर घर झूला झूलैं, करैं कलोलैं गलियाँ-गलियाँ रा।;
ह। ह। ढुनमुनियाँ खेलैं जुबती औ बारी रे ह।॥
मेंहदी ललित लगाय करन में, साजे सूही सारी रा।;
ह। ह। कुलवारी तिय गावैं चढ़ी अटारी रे ह।॥

बार नारि नाचैं औ गावैं, सरस भाव बतलावैं रा।;
ह। ह। बरसावैं रस मनहुं सुमुखि सुकुमारी रे ह।॥
पूरित सहर सरंगी के सुर, सहित ताल तलबन के रा।;
ह। ह। टनकारी जोड़ी, घुँघरू झनकारी रे ह।॥
मोहे जुवक रसीले, निरखत इत उत ब्याकुल घूमैं रा।;
ह। ह। कजरी के मिसि छाई प्रेम खुमारी रे ह।॥
डटे ज्वान बीहड़ औ अक्खड़, ठाढ़े नजर लड़ावैं रा।;
ह। ह। चलैं यार लोगन में छुरी कटारी रे ह।॥
पेंदा कटैं जहाँ तोड़न के, परी छूट की लूटैं रा।;
ह। ह। लेलीं रुपिया रण्डी जेबा झारी रे ह।॥
"चल! बहः! धोबी" ! बोली सुनि-सुनि भागैं रा।
ह। ह। दीन तमाशा बीनन की है ख्वारी रे ह।॥
तिरमोहानी, नारघाट औ सड़क पसर हट्ट पर रा।;
ह। ह। चलैं दुतर्फा नैंनन की तरवारी रे ह।॥
बरसै रस जहँ प्रेम प्रेमघन सुख सरिता भरि उमड़ै रा।;
ह। ह। रहै नगर में नित्य नई गुलजारी रे ह।॥132॥


॥दूसरी॥

मिरजापुरी गुण्डों का यथार्थ चित्र

बनी शकल गुन्डानी, बोलैं गजबै बीहड़ बानी रामा।
ह। चालैं मिरजापुरियों की मस्तानी रे हरी॥
टेढ़ी पगड़ी पर सतरंगा साफा भी बेढंगा रामा।
हा। डटा डुपट्टा गुलेनार या धानी रे हरी॥
कुरता भी चौकाला, डाला झूलै तिस्पर माला रामा।
ह। गन्डा गले भले बाँधे सैलानी रे हरी॥
कसी किनारदार धोती, घुटने के ऊपर होती रामा।
ह। चलैं झूमते ज्यों हथिनी बौरानी रे हरी॥
काला कमर बन्द का फाँड़ा ऊँचा, हथवाँ खाँड़ा रामा।
ह। कमर कटारी छूरी जहर बुझानी रे हरी॥
काँध मोटी लाठी, पैसा कौड़ी एक न गाँठी रामा।
ह। तौ भी डकरैं पी-पी करके पानी रे हरी॥
काला टीका वेंड़ा पर, महावीरी ऊँचा टेढ़ा रामा।
ह। मुँह में चाभत पान, बैल ज्यों सानी रे हरी॥
चेलन डण्ड पेलाये, कुछ को कुस्ती खूब लड़ाये रामा।
ह। सूखे चने चाभ के बूटी छानी रे ह।॥
संझा छोड़ अखाड़े, करके यक्का भी येक् भाड़े रामा।
ह। घूमि डटे 'सत्ती' या 'तिरमोहानी' रे ह।॥
कमर तनिक लचकाये, कुछ-कुछ गर्दन भी उचकाये रामा।
ह। अड़े घुइरते संगिन संग दिलजानी रे ह।॥

अण्ड बण्ड बतलाते छिन-छिन मोछा ऐंठत जाते रामा।
ह। भौंह तान आंखें कर अैंची तानी रे ह।॥
तार देखकर रस्ते जाते, बोली ठोली करते रामा।
ह। बदले में चाहै दस गाली खानी रे ह।॥
नाहक भी लड़ जाते, चाहे उलटे पीटे जाते रामा।
ह। परे पुलिस में भोग करैं हलकानी रे ह।॥
कानिसटिबिलन मारैं, कोतवाली के धरि गढ़ि डारैं रामा।
ह। जेल जाय कोल्हू चढ़ि पेरें घानी रे ह।॥

जब छुटि कै फिर आवैं, 'गुरु मियादी' कै पद पावैं रा।।
ह। तब आवै पूरी उन पर मरदानी रे हरी॥
महाजनन डेरवावैं, बिसनिन से भी माल पुजावैं रामा।
ह। जुवा खेलावैं खुले जान पर ठानी रे हरी॥
बरसहु दया प्रेमघन इनकी मूरखता हरि इन सन रामा।
ह। देहु सुमति जो फिरै गोल बिन्नारी रे हरी।॥133॥