Last modified on 22 मई 2018, at 13:56

हुआ प्रभात / बालकृष्ण गर्ग

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:56, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घोडा काफी देरी से जब
पहुँच अपने दफ्तर,
‘रोज लेट आते हो क्यों तुम’
-घुड़का बंदर अफसर।
घोडा बोला-‘नहीं, नहीं सर!
ऐसा कभी न होता;
मैं न लेटता, कभी न लेटा,
खड़े-खड़े ही सोता’।
[बालक, जुलाई 1977]