Last modified on 14 जुलाई 2021, at 14:50

घर से बाहर पाँव रखा, तालाब मिला / फूलचन्द गुप्ता

घर से बाहर पाँव रखा, तालाब मिला
ग़म की आँधी, साज़िश का सैलाब मिला

अलमारी में सभी किताबें रेज़ा थीं
नहीं सलामत सूखा एक गुलाब मिला

एक नहीं, हम सबकी सूनी आँखों में
खण्डहरों के मलबों जैसा ख़्वाब मिला

दरवाज़े पर सीना ताने प्रश्न खड़ा, और
घर में दुबका दहशत जदा ज़वाब मिला

बदहाली में भूखा, नंगा गलियों में
इक रोटी को लटका हुआ शबाब मिला