नव हे, नव हे!
नव नव सुषमा से मंडित हो
चिर पुराण भव हे!
नव हे!--
नव ऊषा-संध्या अभिनन्दित
नव-नव ऋतुमयि भू, शशि-शोभित,
विस्मित हो, देखूँ मैं अतुलित
जीवन-वैभव हे!
नव हे!--
रचनाकाल: अप्रैल’१९३५
नव हे, नव हे!
नव नव सुषमा से मंडित हो
चिर पुराण भव हे!
नव हे!--
नव ऊषा-संध्या अभिनन्दित
नव-नव ऋतुमयि भू, शशि-शोभित,
विस्मित हो, देखूँ मैं अतुलित
जीवन-वैभव हे!
नव हे!--
रचनाकाल: अप्रैल’१९३५