Last modified on 24 दिसम्बर 2009, at 01:44

अपने लिए / शलभ श्रीराम सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:44, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण ("अपने लिए / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पहले एक लकीर बनी
फिर रोलर घूमने लगा
याददाश्त के ऊपर।

यंत्रणा का ऐसा स्वरुप
इससे पहले कहाँ था दुनिया में?

सभ्यता का यह अभिनव दंड-विधान
मुबारक हुआ हम सब को अपने आप
शरीर के अनुसार सज़ा खोजी हमने
अपने लिए।

अपने लिए बहुत कुछ खोजा हमने
यहाँ तक कि सर्वनाश भी।


रचनाकाल : 1991, विदिशा