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अपने लिए / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
पहले एक लकीर बनी
फिर रोलर घूमने लगा
याददाश्त के ऊपर।
यंत्रणा का ऐसा स्वरुप
इससे पहले कहाँ था दुनिया में?
सभ्यता का यह अभिनव दंड-विधान
मुबारक हुआ हम सब को अपने आप
शरीर के अनुसार सज़ा खोजी हमने
अपने लिए।
अपने लिए बहुत कुछ खोजा हमने
यहाँ तक कि सर्वनाश भी।
रचनाकाल : 1991, विदिशा