गुलज़ार
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जन्म | 18 अगस्त 1936 |
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उपनाम | गुलज़ार |
जन्म स्थान | दीना, जिला झेलम (अब पाकिस्तान में) |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
पुखराज, एक बूंद चाँद, चौरस रात, रवि पार, कुछ और नज़्में, यार जुलाहे, त्रिवेणी , छैंया-छैंया , मेरा कुछ सामान | |
विविध | |
गुलज़ार का पूरा नाम समपूरन सिंह कालरा है। आप "त्रिवेणी" छंद के सृजक और हिन्दी फ़िल्म उद्योग के जाने-माने गीतकार हैं। | |
जीवन परिचय | |
गुलज़ार / परिचय | |
कविता कोश पता | |
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- कुछ और नज्में / गुलज़ार (नज़्म संग्रह)
- छैंया-छैंया / गुलज़ार (गज़ल संग्रह)
- मेरा कुछ सामान / गुलज़ार (गीत संग्रह)
- यार जुलाहे / गुलज़ार (नज़्म एवं गज़ल संग्रह)
- त्रिवेणी / गुलज़ार (त्रिवेणी संग्रह)
- पुखराज / गुलज़ार (त्रिवेणी)
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- पूरे का पूरा आकाश घुमा कर / गुलज़ार
- जिहाल-ए-मिस्कीं मुकों बा-रंजिश / गुलज़ार
- गुलज़ार की त्रिवेणियाँ
- मुझको भी तरकीब सिखा / गुलज़ार
- हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं / गुलज़ार
- ईंधन / गुलज़ार
- ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा / गुलज़ार
- आदतन तुम ने कर दिये वादे / गुलज़ार
- आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ / गुलज़ार
- चलो ना भटके / गुलज़ार
- दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई / गुलज़ार
- एक परवाज़ दिखाई दी है / गुलज़ार
- एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी / गुलज़ार
- हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते / गुलज़ार
- मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर / गुलज़ार
- नज़्म उलझी हुई है सीने में / गुलज़ार
- क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं / गुलज़ार
- साँस लेना भी कैसी आदत है / गुलज़ार
- शाम से आँख में नमी सी है / गुलज़ार
- स्पर्श / गुलज़ार
- वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था / गुलज़ार
- इक जरा छींक ही दो तुम / गुलज़ार
- मौत तू एक कविता है / गुलज़ार
- अफ़साने / गुलज़ार
- रात भर सर्द हवा चलती रही / गुलज़ार
- वो जो शायर था चुप सा रहता था / गुलज़ार
- लैंडस्केप-1 / गुलज़ार
- लैंडस्केप-2 / गुलज़ार
- पेंटिंग-1 / गुलज़ार
- पेंटिंग-2 / गुलज़ार
- पेंटिंग-3 / गुलज़ार
- स्केच / गुलज़ार
- वैन गॉग का एक ख़त / गुलज़ार
- मंजर : नर्सिंग होम / गुलज़ार
- मंजर : शाम / गुलज़ार
- मंजर : ट्रैफ़िक सिग्नल / गुलज़ार
- मंजर : सन सेट / गुलज़ार
- कुछ और मंजर-1 / गुलज़ार
- कुछ और मंजर-2 / गुलज़ार
- आम / गुलज़ार
- अमलतास / गुलज़ार
- खुमानी, अखरोट! / गुलज़ार
- रिश्ते बस रिश्ते होते हैं / गुलज़ार
- एक में दो / गुलज़ार
- कुछ खो दिया है पाइके / गुलज़ार
- किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से / गुलज़ार
- वक्त को आते न जाते न गुजरते देखा / गुलज़ार
- सितारे लटके हुए हैं तागों से आस्माँ पर / गुलज़ार
- बर्फ़ पिघलेगी जब पहाड़ों से / गुलज़ार
- किस क़दर सीधा सहल साफ़ है यह रस्ता देखो / गुलज़ार
- अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है / गुलज़ार
- ज़ुबान पर ज़ायका आता था जो सफ़हे पलटने का / गुलज़ार
- हमें पेड़ों की पोशाकों से इतनी-सी ख़बर तो मिल ही जाती है / गुलज़ार
- दरख़्त रोज़ शाम का बुरादा भर के शाखों में / गुलज़ार
- एक नदी की बात सुनी... / गुलज़ार
- बारिश आने से पहले / गुलज़ार
- मेरे रौशनदान में बैठा एक कबूतर / गुलज़ार
- मकान की ऊपरी मंज़िल पर / गुलज़ार
- माँ उपले थापा करती थी / गुलज़ार
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