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चलो ना भटके / गुलज़ार
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					चलो ना भटके 
लफ़ंगे कूचों में 
लुच्ची गलियों के 
चौक देखें 
सुना है वो लोग 
चूस कर जिन को वक़्त ने 
रास्तें में फेंका थ 
सब यहीं आके बस गये हैं 
ये छिलके हैं ज़िन्दगी के 
इन का अर्क निकालो 
कि ज़हर इन का 
तुम्हरे जिस्मों में 
ज़हर पलते हैं 
और जितने वो मार देगा 
चलो ना भटके 
लफ़ंगे कूचों में 
	
	