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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 50 से 60/पृष्ठ 4

(53)

माई री! मोहि कोउ न समुझावै |
राम-गवन साँचो किधौं सपनो, मन परतीति न आवै ||

लगेइ रहत मेरे नैननि आगे राम-लखन अरु सीता |
तदपि न मिटत दाह या उरको, बिधि जो भयो बिपरीता ||

दुख न रहै रघुपतिहि बिलोकत, तनु न रहै बिनु देखे |
करत न प्रान पयान, सुनहु, सखि! अरुझि परी यहि लेखे ||

कौसल्याके बिरह-बचन सुनि रोइ उठीं सब रानी |
तुलसिदास रघुबीर-बिरहकी पीर न जाति बखानी ||