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राम-भरत-मिलन
रागकेदारा
बिलोके दूरितें दोउ बीर |
उर आयत, आजानु सुभग भुज, स्यामल-गौर सरीर ||
सीस जटा, सरसीरुह लोचन, बने परिधन मुनिचीर |
निकट निषङ्ग, सङ्ग सिय सोभित, करनि धुनत धनु-तीर ||
मन अगहुँड़, तनु पुलक सिथिल भयो, नलिन नयन भरे नीर |
गड़त गोड़ मानो सकुच-पङ्क महँ, कढ़त प्रेम-बल धीर ||
तुलसिदास दसा देखि भरतकी उठि धाए अतिहि अधीर |
लिये उठाइ उर लाइ कृपानिधि बिरह-जनित हरि पीर ||