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ता दिन सृङ्गबेरपुर आए |
राम-सखा ते समाचार सुनि बारि बिलोचन छाए ||
कुस-साथरी देखि रघुपतिकी हेतु अपनपौ जानी |
कहत कथा सिय-राम-लषनकी बैठेहि रैनि बिहानी ||
भोरहिं भरद्वाज आश्रम ह्वै, करि निषादपति आगे |
चले जनु तक्यो तड़ाग तृषित गज घोर घामके लागे ||
बूझत चित्रकूट कहँ जेहि तेहि, मुनि बालकनि बतायो |
तुलसी मनहु फनिक मनि ढूँढ़त, निरखि हरषि हिय धायो ||