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रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं / शृंगार-लतिका / द्विज

नाराच
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)

रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं । प्रभा-निहारि हारि, हारि, चित्त-बृत्ति मोहईं ॥
समीर मंद मंद डोलि, द्वार पैं निकुंज के । पसारि पाँवड़े रहे, चहूँ प्रसूण-पुंज के ॥२४॥