3(वन के लिये बिदाई-1)
रहि चलिये सुंदर रघुनायक।
जो सुत! तात बचन पालन रत, जननिउ तात! मानिबे लायक।।
बेद बिदित यह बानि तुम्हारी रघुपति सदा संत सुखदायक।
राखहु निज तरजाद निगमकी, हौं बलि जाउँ धरहु धनुसायक।
सोक कूप पुर परिहि मरिहिं नृप सुनि संदेस रघुनाथ सिधायक।
यह दूसन बिधि तोहि होत अब रामचरन बियोग अपजायक।।
मातु बचन सुनि स्त्रवत नयत जल कछु सुभाउ जनु नरतनु पायक।
तुलसिदास सुर काज न साध्यौ तौ तो दोष होय मोहि महि आयक।।