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रजनीगंधा / त्रिलोचन

अनदिख टहनियाँ

रजनीगंधा की

हवा में

फैली हैं


साँसों में मेरी

लहराती हैं

चेतना को छेड़ कर

सिराओं में

जीवन का वेग

बन जाती हैं


इन के उलहने की गति

जान पाता हूँ

केवल परस से

रात रोक नहीं पाती