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केवल रामहीसे मांगो / तुलसीदास/ पृष्ठ 5
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उद्बोधन-3
( छंद 33 से 34 तक)
(33)
भलि भारतभूमि , भलें कुल जन्मु, समाजु सरीरू भलो लहि कै।
करषा तजि कै परूषा बरषा हिम, मारूत, घाम सदा सहि कै।
जो भजै भगवानु सयान सोई , ‘तुलसी’ हठ चातकु ज्यों गहि कै।
नतु और सबै बिषबीज बए, हर हाटक कामदुहा नहि कै।।
(34)
जो सुकृती सुचिमंत सुसंत, सुजान सुसील सिरोमनि स्वै।
सुर-तीरथ तासु मनावत आवत, पावन होत हैं ता तनु छ्वै।
गुनगेहु सनेहको भाजनु सो, सब ही सों उठााइ कहौं भुज द्वै।
सतिभायँ सदा छल छाड़ि सबै ‘तुलसी’ जो रहै रघुबीरको ह्वै।।