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काशी में महामारी / तुलसीदास/ पृष्ठ 5

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काशी में महामारी-5

 ( छंद 177, 178)

 (177)

एक तौ कराल कलिकाल सुल-मूल , तामें ,
 कोढ़मेंकी खाजु-सी सनीचरी है मीनकी।

बेद-धर्म दूरि गए, भूमि चोर भूप भये,
साधु सीद्यमान जानि रीति पाप पीनकी।

दूबरेको दूसरो न द्वार , राम दयाधाम!
 रावरीऐ गति बल-बिभव बिहीन की।

 लागैगी पै लाज वा बिराजमान बिरूदहि,
महाराज! आजु जौं न देत दादि दीनकी।।

विविध-1

(178)
 
रामनाम मातु पितु स्वामि समरथ, हितु,
आस रामनामकी, भरोसो रामनामको।

प्रेम रामनामहीसों, नेम रामनामहीको,
 जानौं नाम मरम पद दाहिनो न बामको।

स्वारथ सकल परमारथको रामनाम,
रामनाम हीन तुलसी न काहू कामको।

राम की सपथ , सरबस मेंरे रामनाम,
 कामधेनु-कामतरू मोसे छीन छामको।।