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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 2
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मेरो सब पुरुषारथ थाको |
बिपति बँटावन बन्धु-बाहु बिनु करौं भरोसो काको ||
सुनु, सुग्रीव! साँचेहू मोपर फेर्यो बदन बिधाता |
ऐसे समय समर-सङ्कट हौं तज्यो लषन-सो भ्राता ||
गिरि, कानन जैहैं साखा-मृग, हौं पुनि अनुज-सँघाती |
ह्वैहै कहा बिभीषनकी गति रही सोच भरि छाती ||
तुलसी सुनि प्रभु-बचन भालु-कपि सकल बिकल हिय हारे |
जामवन्त हनुमन्त बोलि तब, औसर जानि प्रचारे ||