(8)
रागमारु
जौ हौं अब अनुसासन पावौं |
तौ चन्द्रमहि निचोरि चैल-ज्यों, आनि सुधा सिर नावौं ||
कै पाताल दलौं ब्यालावलि अमृत-कुण्ड महि लावौं |
भेदि भुवन, करि भानु बाहिरो तुरत राहु दै तावौं ||
बिबुध-बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु-अनुग कहावौं |
पटकौं मीच नीच मूषक-ज्यौं, सबहिको पापु बहावौं ||
तुम्हरिहि कृपा, प्रताप तिहारेहि नेकु बिलम्ब न लावौं |
दीजै सोइ आयसु तुलसी-प्रभु, जेहि तुम्हरे मन भावौं ||