भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली लङ्काकाण्ड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 4

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(9)

 सुनि हनुमन्त-बचन रघुबीर |
  सत्य, समीर-सुवन! सब लायक, कह्यो राम धरि धीर ||

  चहिये बैद, ईस-आयसु धरि सीस कीस बलाइन |
  आन्यो सदनसहित सोवत ही, जौलौं पलक परै न ||

  जियै कुँवर, निसि मिलै मूलिका, कीन्हीं बिनय सुषेन |
  उठ्यो कपीस,सुमिरि सीतापति चल्यो सजीवनि लेन ||

  कालनेमि दलि बेगि बिलोक्यौ द्रोनाचल जिय जानि |
  देखी दिब्य ओषधी जहँ तहँ जरी, न परि पहिचानि ||

  लियो उठाय कुधर कन्दुक-ज्यौं, बेग न जाइ बखानि |
  ज्यों धाए गजराज-उधारन सपदि सुदरसनपानि ||

  आनि पहार जोहारे प्रभु, कियो बैदराज उपचार |
  करुनासिन्धु बन्धु भेण्ट्यो, मिटि गयो सकल दुख-भार ||

  मुदित भालु कपि-कटक, लह्यो जनु समर पयोनिधि पार |
  बहुरि ठौरही राखि महीधर आयो पवनकुमार ||

  सेन सहित सेवकहि सराहत पुनि पुनि राम सुजान |
  बरषि सुमन, हिय हरषि प्रसंसत बिबुध बजाइ निसान ||

  तुलसिदास सुधि पाइ निसाचर भए मनहु बिनु प्रान |
  परी भोरही रोर लङ्कगढ़, दई हाँक हनुमान ||