गीतावली लङ्काकाण्ड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 4
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सुनि हनुमन्त-बचन रघुबीर |
सत्य, समीर-सुवन! सब लायक, कह्यो राम धरि धीर ||
चहिये बैद, ईस-आयसु धरि सीस कीस बलाइन |
आन्यो सदनसहित सोवत ही, जौलौं पलक परै न ||
जियै कुँवर, निसि मिलै मूलिका, कीन्हीं बिनय सुषेन |
उठ्यो कपीस,सुमिरि सीतापति चल्यो सजीवनि लेन ||
कालनेमि दलि बेगि बिलोक्यौ द्रोनाचल जिय जानि |
देखी दिब्य ओषधी जहँ तहँ जरी, न परि पहिचानि ||
लियो उठाय कुधर कन्दुक-ज्यौं, बेग न जाइ बखानि |
ज्यों धाए गजराज-उधारन सपदि सुदरसनपानि ||
आनि पहार जोहारे प्रभु, कियो बैदराज उपचार |
करुनासिन्धु बन्धु भेण्ट्यो, मिटि गयो सकल दुख-भार ||
मुदित भालु कपि-कटक, लह्यो जनु समर पयोनिधि पार |
बहुरि ठौरही राखि महीधर आयो पवनकुमार ||
सेन सहित सेवकहि सराहत पुनि पुनि राम सुजान |
बरषि सुमन, हिय हरषि प्रसंसत बिबुध बजाइ निसान ||
तुलसिदास सुधि पाइ निसाचर भए मनहु बिनु प्रान |
परी भोरही रोर लङ्कगढ़, दई हाँक हनुमान ||