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ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें / गुलाब खंडेलवाल

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ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें
तू ही बतला कि तुझको क्या समझें

तू समझता रहे हमें कुछ भी
हम तुझे क्यों न दिलरुबा समझें

पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
हँस के बोले कि जो कहा, समझें

एक ग़र्दिश से दूसरी ग़र्दिश
ज़िन्दगी, बस ये सिलसिला समझें

तितलियाँ मुँह फिरा रही हैं, गुलाब!
अब है बदली हुई हवा, समझें