मुश्किल से लिखा जाता है इराक़ का हिज्जे
लिख जाने पे' रंग लाता है इराक़ का हिज्जे
हर सू हों सितमगर औ' कोई पासबाँ न हो
शोलों को भी शरमाता है इराक़ का हिज्जे
बग़दाद पर वाशिंग्टन लिखना नहीं आसाँ
आलम को जता जाता है इराक़ का हिज्जे
इस दौर-ए-सियासत में ज़ौर-ओ-जब्र के बरअक्स
इक मा'नी नया पाता है इराक़ का हिज्जे
इराक़ के हिज्जे में वियेतनाम की सूरत
क्या ख़ूब दिखा जाता है इराक़ का हिज्जे
(रचनाकाल : 2003)