भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं / हरिदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 4 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिदास }} Category:पद <poeM> ज्यौंहिं ज्यौ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं,त्योंहीं त्योंहीं रहियत हौं,हे हरि!
और अपरचै पाय धरौं सुतौं कहौं कौन के पैंड भरि.
जदपि हौं अपनों भायो कियो चाहौं,कैसे करि सकौं जो तुम राखौ पकरि.
कहै हरिदास पिंजरा के जानवर लौं तरफराय रह्यौ उडिबे को कितोऊ करि.