भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद न जाए बीते दिनों की / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:35, 2 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शैलेन्द्र |संग्रह=फ़िल्मों के लि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद न जाए, बीते दिनों की
जाके न आये जो दिन, दिल क्यूँ बुलाए, उन्हें
दिल क्यों बुलाए
याद न जाये ...

दिन जो पखेरू होते, पिंजरे में मैं रख देता
पालता उनको जतन से
पालता उनको जतन से, मोती के दाने देता
सीने से रहता लगाए
याद न जाए ...

तस्वीर उनकी छुपाके, रख दूँ जहाँ जी चाहे
मन में बसी ये सूरत
मन में बसी ये सूरत, लेकिन मिटे न मिटाए
कहने को है वो पराए
याद न जाए ...