भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जितनी बुरी कही जाती है / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 11 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली }} Category:गज़ल <poeM> जितनी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया.
चार घरों के एक मोहल्ले के बाहर भी है आबादी
जैसी तुम्हें दिखाई दी है सब की वही नहीं है दुनिया.
घर में ही मत उसे सजाओ इधर उधर भी ले के जाओ
यूँ लगता है जैसे तुम से अब तक खुली नहीं है दुनिया.
भाग रही है गेंद के पीछे जाग रही है चाँद के नीचे
शोर भरे काले नारों से अब तक डरी नहीं है दुनिया.