भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़र में हर दुश्वारी रख / 'अमीर' क़ज़लबाश
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 1 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अमीर' क़ज़लबाश }} {{KKCatGhazal}} <poem> नज़र मे...' के साथ नया पन्ना बनाया)
नज़र में हर दुश्वारी रख
ख़्वाबों में बेदारी रख
दुनिया से झुक कर मत मिल
रिश्तों में हम-वारी रख
सोच समझ कर बातें कर
लफ़्ज़ों में तह-दारी रख
फ़ुटपाथों पर चैन से सो
घर में शब-बेदारी रख
तू भी सब जैसा बन जा
बीच में दुनिया-दारी रख
एक ख़बर है तेरे लिए
दिल पर पत्थर भारी रख
ख़ाली हाथ निकल घर से
ज़ाद-ए-सफ़र हुश्यारी रख
शेर सुना और भूखा मर
इस ख़िदमत को जारी रख