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उम्र गुज़री है इल्तिजा करते / 'अनवर' साबरी

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उम्र गुज़री है इल्तिजा करते
क़िस्सा-ए-ग़म लब-आशना करते

जीने वाले तेरे बग़ैर ऐ दोस्त
मर न जाते तो और क्या करते

हाए वो क़हर-ए-सादगी-आमेज़
काश हम फिर उन्हें ख़फ़ा करते

रंग होता कुछ और दुनिया का
शैख़ मेरा अगर कहा करते

आप करते जो एहतराम-ए-बुताँ
बुत-कदे ख़ुद ख़ुदा ख़ुदा करते

रिंद होते जो बा-शुऊर 'अनवर'
क्या बताऊँ तुम्हें वो क्या करते