भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेयालीस के साथी / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:30, 25 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमाकांत द्विवेदी 'रमता' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथी! ऊ दिन परल इआद, नयन भरि आइल ए साथी!
गरजे-तड़के-चमके-बरसे घटा भयावन कारी
आपन हाथ आपु ना सूझे, अइसन रात अन्हारी
चारों ओर भइल पनजंजल, ऊ भादो-भदवारी
डेगे-डेग गोड़ बिछिलाइल, फनली कठिन कियारी
केहि आसा बन-बन फिरलीं छिछियाइल ए साथी!
हाथे कड़ी, पाँव में बेड़ी, डाँड़े रसी बन्हाइल
बिना कसूर मूँज के अइसन लाठिन देह थुराइल
सूपो-चालन कुरुक कराके जुरमाना असुलाइल
बड़ा धरछने आइल, बाकी ऊ सुराज ना आइल
जवना खातिर तेरहो करम पुराइल ए साथी!
भूखे पेट बिसूरे लइका-समुझे ना समुझावे
गाँथि लुगरिया रनिया झुरवे, लाजो देखि लजावे
बिनुकिवाँड़ घर कुकुर पइसे-ले छुछहँड़ ढिमिलावे
रात-रात भर सोच फिकिर में आँखी नीन न आवे
ई दुख सहल न जाय-कि मन अबियाइल ए साथी!
कूर-सँघाती राज हड़पले, भरि मुँह ना बतिआवसु
हमरे बल से कुरुसी तूरसु, हमके आँखि दुखवसु
दिन-दिन एने बढ़े मासिबत, ओने मउज उड़ावसु
‘पाथर बोझल नाव, भँवर में दइवे पार लगावसु‘
सजगे इन्हिको अंतकाल निगिचाइल ए साथी!
साथी ऊ परल इयाद, नयन भरि आइल ए साथी!