Last modified on 6 नवम्बर 2007, at 17:20

इस तरह दुनिया सुन्दर हुई थी / सविता सिंह

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:20, 6 नवम्बर 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शाम ढल चुकी थी

रात पसार रही थी अपना आँचल

आसमान से नीला प्रकाश झर रहा था

सामने का एक पेड़ उस में नहा रहा था

तभी उसकी एक डाल हौले-से हिली थी

सम्भव था उसे हवा ने हिलाया हो

या किसी चिड़िया ने खुजलाई हो वहाँ बैठ कर अपनी गरदन

या फिर बदली हो जगह

गई हो एक डाल से कूदकर दूसरी डाल पर


सम्भव था इससे दुनिया सुन्दर हुई हो

उदास किन्हीं आँखों में जीवन की चमक लौटी हो