Last modified on 25 सितम्बर 2013, at 19:23

आंख खोल कुछ मुंह तै बोल / सतबीर पाई

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:23, 25 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतबीर पाई }} {{KKCatHaryanaviRachna}} <poem> आंख खोल कु...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आंख खोल कुछ मुंह तै बोल
सुण कित तेरा ध्यान गया
यू लुट तेरा सब सामान गया

इन लोगां नै मिलकै नै चाल कसूती चाल्ली रै
ईर्ष्या और द्वेष भरया फेर फूट तेरे मैं डाल्ली रै
ईब तलक ना होया मेळ बीत कै सदी बहुत सी जा ली रै
सारा दिन करै काम शाम तक फेर भी रहै कंगाली रै
फैंक जाल तेरा हड़प माल वो बण धनवान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल

करकै नै हेरा-फेरी तेरी बुद्धि करी मलिन दिखे
फिरै तबाही भरता मरता कर दिया साधनहीन दिखे
दिया उसी नै धौखा जिसपै करता रहा यकीन दिखे
रहया सत्ता तै दूर सदा इस गफलत मैं लौ लीन दिखे
दळया रै बहुत तू छळया रै बहुत न्यू बण बेजान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल

होग्या तू कंगाल चाल कै आग्गै सत्यानाश होया
बेचारा बेसहारा बणग्या फेर गैर का दास होया
नासमझी मैं शूद्र लोगो खत्म थारा इतिहास होया
थारी आपस की रही फूट झूठ के ऊपर न्यू विश्रास होया
शैतानी कर बेइमानी कर न्यू शैतान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल

तू ही बता दे सोच समझ कै तेरा जमीर कड़ै सै रै
होया करैं थे बादशाही के ताज और तीर कड़ै सै रै
नैतिकता मैं तेरा बराबर सांझा सीर कड़ै सै रै
पाईवाला प्रचारी देखो सतबीर कड़ै सै रै
हारी मैं अलाचारी मैं मिट नाम निशान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल