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केही केरे सिर सोहे सोने क छतुरिया / अवधी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

केही केरे सिर सोहे सोने क छतुरिया, केहिया सिर ना
रामा ढुरेला पसीनवा केहिया सिर ना

राम जी के सिर सोहै सोने क छतुरिया, लखन सिर ना
रामा ढुरेला पसीनवा लखन सिर ना

सीता आवो मोरे देवरा अंगन मोरे बैठो, के मैं पोंछी देउ ना
तोहरे सिर का पसीनवा मै पोंछि देउ ना

लक्ष्मण सिर का पसीनवा तु जनि पोंछौ भौजी, के धूमिल होइहैं ना
तोहरी चटकी चुनरिया धूमिल होइहैं ना

सीता चुनरी त हमरी धोबीया घरे जैहैं, के लखन ऐस ना
कहाँ देवरा मैं पैहों के लखन ऐस ना