भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिलसिला / वाज़दा ख़ान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:27, 7 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाहतों में डूब जाने बह जाने का
सिलसिला नदी ने शुरू किया था
तभी न पहाड़ से उतरती
दूर तक सफर करती
पहुँचती है समंदर तक
समंदर सुरूर में है
थोड़ा गुरूर में भी
पता है उसे नदी को
उस तक आना है।