Last modified on 7 जनवरी 2014, at 13:11

सुनि मधु मुनि-मन-मोहनि मुरली / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 7 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनि मधु मुनि-मन-मोहनि मुरली, करि मधु रूप-सुधा-रस-पान।
बिसरे अग-जग, तन-मन सगरे, राधा भ‌ई तुरत बेभान॥
स्रवन-नयन-पथ करि प्रबेस उर, छेडि रहे मधु मुरली-तान।
छाय रहे, रस लगे उँड़ेलन दिय मधुर रसराज सुजान॥
जोगी, परम सिद्ध, तापस, मुनि, ग्यानी, जीवन्मुक्त महान।
सुनि मुरली, अवलोकि मधुर छबि, रखि नहिं सकत चिा-‌अवधान॥
चकित-थकित, उर द्रवित, स्रवत दृग, बरबस तजि बिराग अरु ग्यान।
डूबत मधुर प्रेम-रस-निधि अति, भजत अहैतुक मन भगवान॥