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झूलत हरित कुंज पिय-प्यारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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झूलत हरित कुंज पिय-प्यारी।
हरित हिंडोरे, हरित डार में, हरित डोर डारे हरि‌आरी॥
पावस ऋतु तरु-लता हरित सब, हरित भूमि-तृण-छबि अनियारी।
हरित बसन, आभरन हरित सब, आसन हरित, हँसनि हियहारी।
हरित सखी दो‌उ ओर झुलावत, हरित हिये हर्षित अतिभारी।
हरित राग गावत मलार सखि, हरि-हरि मनहारिनि सुखकारी॥
पीत-स्याम मिलि भयौ हरित रँग रूप मदन-कोटिन-मदहारी।
खग-मृग हरित निहारत प्रमुदित मधुर स्याम-स्यामा सुकुमारी॥