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स्याम-घन कब बरसैगौ आय / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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स्याम-घन कब बरसैगौ आय ?
कब अमिलन-संताप मिटैगौ, बिरह-निदाघ नसाय ?
कब मम मन-मयूर नाचैगौ, उर आनँद न समाय ?
कब चित चातक चहकि उठैगौ, स्याम स्वाति-जल पाय ?
स्याम-मिलन बिनु कछु नहिं भावै, कछु नहिं मोहि सुहाय।
स्याम-मिलन-रस ही साँचौ रस जीवन में सरसाय॥