भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रानधन सुंदर स्याम सुजान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:40, 17 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
प्रानधन सुंदर स्याम सुजान !
छटपटात तुम बिना दिवस-निसि मेरे दुखिया प्रान॥
बिदरत हियौ दरस बिनु छन-छन, दुस्सह दुखमय जीवन।
अमिलन के अति घोर दाह तैं दहत देह-इंद्रिय-मन॥
कलपत-विलपत ही दिन बीतत, निसा नींद नहिं आवै।
सुपन-दरसहू भयो असंभव, कैसैं मन सचु पावै॥
अब जनि बेर करौ मन-मोहन ! दया नैक हिय धारौ।
सरस सुधामय दरसन दै निज, उर की अगिनि निवारौ॥