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ऊधौ! तुम तो बड़े बिरागी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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ऊधौ ! तुम तो बड़े बिरागी।
हम तो निपट गँवारि ग्वालिनीं, स्याम-रूप-अनुरागी॥
जेहि छिन प्रथम स्याम-छबि देखी, तेहि छिन हृदय समानी।
निकसत नहिं अब कौनेहू बिधि रोम-रोम उरझानी॥
आठों जाम मगन मन निरखत स्याम-मुरति निज माहीं।
दृग नहिं पेखत अन्य बस्तु जग, बुद्धि बिचारत नाहीं॥
ऊधौ ! तुहरौ ग्यान निरंतर होउ तुमहिं सुखकारी।
हम तौ सदा स्याम-रँग राचीं ताहि न सकहिं उतारी॥