भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वर्ण-पिंजर-स्थित मगन मन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:14, 17 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
स्वर्णपिंजरस्थित मगन मन सुक सुनावत बैन॥
नीलमनि-सौंदर्य-सुषमा कोटि मर्दन-मैन॥
मधुरतम मनहरन लीला सुनि चकित चित चैन।
लगीं निरखन छबि परम सुख रहे अपलक नैन॥
मुख-कमल कर-पद अचंचल अंग आनँद-ऐन।
मुक्त चंचु सु-मौन मुख, लखि लाडिली सुख-दैन॥