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स्याम-मन उमग्यौ आनँद-सिंधु / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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स्याम-मन उमग्यौ आनँद-सिंधु।
निरखत मधुर, मनोहर, सुन्दर राधा-मुख-सरदिंदु॥
तन अति पुलक, मुलक मधु अधरन, हृदै प्रेम-रस-पूर।
चंचल नयन अचंचल, अपलक ठिठकि रहे लखि नूर॥
बही सुधा-धारा अति सीतल, भीगे मधुर कपोल।
गदगद कंठ, गिरा नहिं आवत, बोले रसमय बोल॥
प्रान प्रियतमे! तुम हो मेरे जीवन की आधार।
कबौं न बिछुरौ मन-नयननि तैं सहज कृपा उर धार’॥