भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हवस को है निशात-ए-कार / ग़ालिब

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:52, 27 जनवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवस को है निशात-ए कार क्या क्या
न हो मर‌ना तो जीने का मज़ा क्या

तजाहुल-पेशगी से मुद्‌द`आ क्या
कहां तक अय सरापा-नाज़ क्या क्या

नवाज़िशहा-ए बेजा देखता हूं
शिकायतहा-ए रनगीं का गिला क्या

निगाह-ए बे-मुहाबा चाहता हूं
तग़ाफ़ुलहा-ए तमकीं-आज़मा क्या

फ़ुरोग़-ए शु`लह-ए ख़स यक-नफ़स है
हवस को पास-ए नामूस-ए वफ़ा क्या

नफ़स मौज-ए मुहीत-ए बे-खुदी है
तग़ाफ़ुलहा-ए साक़ी का गिला क्या

दिमाग़-ए `इत्‌र-ए पैराहन नहीं है
ग़म-ए आवारगीहा-ए सबा क्या

दिल-ए हर क़तरा है साज़-ए अन-अल-बहर
हम उस के हैं हमारा पूछना क्या

मुहाबा क्या है मैं ज़ामिन इधर देख
शहीदान-ए निगह का ख़ूं-बहा क्या

सुन ऐ ग़ारत्गर-ए जिन्स-ए वफ़ा सुन
शिकस्त-ए क़ीमत-ए दिल की सदा क्या

किया किस ने जिगर-दारी का द`वा
शकेब-ए ख़ातिर-ए `आशिक़ भला क्या

यह क़ातिल व`दह-ए सब्र-आज़्मा क्यूं
यह काफ़िर फ़ितनह-ए ताक़त-रुबा क्या

बला-ए जां है ग़ालिब उस की हर बात
इबारत क्या इशारत क्या अदा क्या