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रुबाई / शमशेर बहादुर सिंह

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1.

हम अपने खयाल को सनम समझे थे,
अपने को खयाल से भी कम समझे थे!
होना था- समझना न था कुछ भी, शमशेर,
होना भी कहाँ था वह जो हम समझे थे!

2.

था बहती सदफ में बंद यकता गौहर:
ऐसे आलम में किसको तकता गौहर!
दिल अपना जो देख सकता ठहरा है कहाँ-
दरिया का सुकून देख सकता गौहर!